कई जीत बाक़ी हैं कई हार बाक़ी हैं अभी ज़िंदगी का सार बाक़ी है.
यहाँ से चले हैं नयी मंज़िल के लिए ये तो एक पन्ना था अभी तो पूरी किताब बाक़ी है
मंज़िल उन्ही को मिलती है जिनके सपनो में जान होती है,
पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है !
मंज़िल पाना तो बहुत दूर की बात हैं।
गुरूरमें रहोगे तो रास्ते भी न देख पाओगे।।
मंज़िल तो मिल ही जायेगी भटक कर ही सही,
गुमराह तो वो हैं जो घर से निकला ही नहीं करते।.
चलता रहूँगा मै पथ पर, चलने में माहिर बन जाउंगा,
या तो मंज़िल मिल जायेगी, या मुसाफिर बन जाउंगा !
रास्ते कहाँ ख़त्म होते हैं ज़िंदग़ी के सफ़र में,
मंज़िल तो वहाँ है जहाँ ख्वाहिशें थम जाएँ।
मंज़िल का पता है न किसी राहगुज़र का
बस एक थकन है कि जो हासिल है सफ़र का
फ़रेब हम को न क्या क्या इस आरज़ू ने दिये . . .
वही थी मंज़िल-ए-दिल हम जहाँ से लौट आए .
आप की मंज़िल हूँ मैं मेरी मंज़िल आप हैं
क्यूँ मैं तूफ़ान से डरूँ मेरे साहिल आप हैं
हम पड़ाव को समझे मंज़िल लक्ष्य हुआ आंखों से ओझल वतर्मान के मोहजाल में- आने वाला कल न भुलाएँ। आओ फिर से दिया जलाएँ।
ज़रा ठहरो हमें भी साथ ले लो कारवाँ वालो
अगर तुम से न पहचानी गई मंज़िल तो क्या होगा
मुश्किलें जरुर है, मगर ठहरा नही हूँ मैं…
मंज़िल से जरा कह दो, अभी पहुंचा नही हूँ मैं.
अभी ना पूछो मंज़िल कँहा है, अभी तो हमने चलने का इरादा किया है।
ना हारे हैं ना हारेंगे कभी, ये खुद से वादा किया है।
सामने मंज़िल थी और पीछे उसका वजूद; क्या करते हम भी यारों;
रुकते तो सफर रह जाता चलते तो हमसफ़र रह जाता।
मैं अकेला ही चला था जानिब-ए-मंज़िल
मगर लोग मिलते गये, और कारवाँ बनता गया
काश क़दमों के निशां महफूज़ मंज़िल तक रहें
जाने कितनों को मयस्सर रहबरी होती नहीं
मोहब्बत में सहर ऐ दिल बराए नाम आती है
ये वो मंज़िल है जिस मंज़िल में अक्सर शाम आती है
नहीं निगाह में मंज़िल तो जुस्तजू ही सही
नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही
अलग अलग थे रास्ते लेकिन मंज़िल एक है
सुकून है दिल को के हम मिलेंगे ज़रूर
उन्हें फ़ुरसत ही नहीं है गेरौ की महफ़िल से,
इक हम है कि आज भी उन्हें अपनी मंज़िल बनाए बैठे है
खोजोगे तो हर मंज़िल की राह मिल जाती है
सोचोगे तो हर बातकी वजह मिल जाती है
ज़िंदगी इतनी मजबूर भी नही ए दोस्त
“प्यार भी जीने की वजह बन जाती है
हार को मन का डर नहीं मंज़िल का सबक बना
जिन्दगी अकसर उलझती है जब राहें मंजिल के करीब हो…..!
अंदाज़ कुछ अलग ही हे मेरे सोचने का, सब को मंज़िल का शौक़ है,, मुझे रास्ते का !!
बढ़ते चले गए जो वो मंज़िल को पा गए
मैं पत्थरों से पाँव बचाने में रह गया….
ज़िन्दगी! मौत तेरी मंज़िल है।। दूसरा कोई रास्ता ही नहीं।।
सच घटे या बढ़े तो सच न रहे।। झूठ की कोई इन्तहा ही नहीं।।
ये और बात कि मंज़िल-फ़रेब था लेकिन
हुनर वो जानता था हम-सफ़र बनाने का
मंज़िल-ए-इश्क पे तनहा पहुँचे कोई तमन्ना साथ न थी,
थक थक कर इस राह में आख़िर इक इक साथी छूट गया।
खुद पुकारेगी मंज़िल तो ठहर जाऊँगा…
वरना मुसाफिर खुद्दार हूँ, यूँ ही गुज़र जाऊँगा…!!!
किसी को घर से निकलते ही मिल गई मंज़िल
कोई मेरी तरह ताउम्र सफ़र में रहा।
दिल बिन बताए मुझे ले चल कही…
जहां तू मुस्कुराएं मेरी मंज़िल वही !!
परिंदो को मिलेगी मंज़िल एक दिन , ये फैले हुए उनके पर बोलते है. और वही लोग रहते है खामोश अक्सर, ज़माने में जिनके हुनर बोलते है ..
फ़ैज़ थी राह सर-ब-सर मंज़िल,
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आए।
निगाहों में मंज़िल थी, गिरे और गिर कर संभलते रहे;
हवाओं ने बहुत कोशिश की, मगर चिराग आंधियों में भी जलते रहे।
न मंज़िल का, न मकसद का , न रस्ते का पता है
हमेशा दिल किसी के पीछे ही चलता रहा है
मिलना किस काम का अगर दिल ना मिले,
चलना बेकार हे जो चलके मंज़िल ना मिले
मन की जो सुनी थी उसने… अपनी मंज़िल पानी थी !
ख़्वाब तो पुरे होने ही थे.. उसने दिल से जो ठानी थी !!
Post Suitable for: Motivational Quotes for Network Marketing, Motivational Quotes for Goal Setting, Motivational Quotes for MLM, Motivational for MLM, Goal Setting, Motivational Quotes for Sales Team, etc.